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Showing posts from August, 2014
Aaj Ki Baat Mere Sath !
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कल रोगी उर्फ योगी बोल गऐ, और यहां तक कह गये कि “जहां 10 प्रतिशत से ज्यादा मुसलमान होते हैं दंगे वहीं होते हैं” सवाल यह पैदा होता है कि गुजरात में पांच प्रतिशत मुसलमान हैं वहां दंगे क्यों हुऐ ? मुजफ्फरनगर के कुटबा, कुटबी, लिसाढ़, फुगाना, लाख, काकड़ा, सिसोली, कुल्हेड़ी, यह लिस्ट और भी तवील हो सकती है, इन गांवों में मुसलमानों का प्रतिशत मात्र एक प्रतिशत था तो यहां पर इन लोगों को क्यों मारा गया ? और उस पर विडंबना देखिये जिन लोगों के साथ हिंसक वारदातें हुईं उनका ताअल्लुक धर्म विशेष से जरूर था। मगर उनमें से अधिकतर को नमाज के दौरान की जाने नीयत तक का इल्म नहीं था। भूल गये क्या कहा था कुटबा के उस शमीम ने जिसके परिवार के चार लोगों का कत्ल किया गया था। उस 70 वर्षीय हाड़ मांस के आदमी ने कंपकपाती हुई जुबां से कहा था कि ‘हम न मुसलमान हैं न हिंदू, हम तो गरीब हैं’। बहरहाल योगी आदित्यनाथ ने एक बयान और दिया जिसमें कहा गया कि एक लड़की के बदले 100 लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराया जायेगा। इन दोनों बयानों की जरूरत आखिर इसी समय क्यों पड़ी ? क्या आदित्य को पहले मालूम नहीं था कि कहां दस प्रतिशत मुस्लिम होते है...
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पहले बाबू बजरंगी फिर असीमानंद और कल कोई किसी और को जमानत मिल जायेगी। यही है अच्छे दिनों का आगाज। अब ये मत कहना कि बम विस्फोट क्यों होते हैं ? और हमेशा निर्दोष ही क्यों पकड़े जाते हैं ? और दोषी क्यों बच जाते हैं ? अभी आगे – आगे देखिये क्या होता है। अभी तो गोडसे को वीर चक्र या भारत रत्न भी दिया जाये तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिये। सोशल जस्टिस की धज्जियां उड़ाने वाले संघी न्यायधीशों ने भी मन में आशा पाल रखी है रिटायरमेंट के शायद किसी आयोग की अध्यक्षता मिल जाये या फिर किसी राज्य के राज्यपाल का पद। इसी आशा के साथ वे न्याय की देवी के साथ ‘बलात्कार’ कर रहे हैं ।
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पिछले 65 साल से भारत में दंगों का वीभत्स इतिहास रहा है। जब भी कहीं भी दंगा होता है उसी दौरान अक्सर सवाल उठाये जाते हैं कि सरकार दंगा में रोकने में इतनी बेबस क्यों है ? एक तरफ दंगा रोकने और दंगाईयों को सबक सिखाने की बात होती हैं दूसरी ओर सरकारी मशीनरी उन्हें खुली छूट दे देती है कि जाओ और मार काट करो। ताजा मामला चर्चित गुजरात के नरोदा पाटिया नरसंहार का है जिसमें सजा याफ्ता माया कोडनानी को गुजरात हाईकोर्ट ने जमानत देदी है। अगस्त 2012 में गुजरात की एक विशेष अदालत ने माया कोडनानी और बजरंग दल नेता बाबू बजरंगी समेत 31 लोगों को नरोदा पटिया नरसंहार का दोषी करार दिया था. कोर्ट ने उन्हें “नरोदा इलाके में दंगों की सरगना” क़रार दिया था और 26 साल क़ैद की सज़ा सुनाई थी. इसके बाद नवंबर 2013 में गुजरात उच्च न्यायालय ने माया कोडनानी को स्वास्थ्य कारणों से तीन महीने की अस्थायी ज़मानत दे दी थी. माया कोडनानी आज फिर सलाखों से बाहर खुली हवा में सांस ले रही हैं, ऐसे में दंगों और दंगाईयों पर काबू पाया जाये तो कैसे ? अव्वल तो दंगाईयों को जल्दी से सजा नहीं मिल पाती अब अगर मिली भी थी तो उसे गुजरात न्यायपालिका ने ...
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औरंगजेब और गुरु गोविन्द सिंह गुरु गोविन्द सिंह ने अमृतसर के दरबार साहेब को अपना केंद्र बनाया था। उनके पिता तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु थे। उन्होंने पंथ की हित साधना में अपना सर तक कटवा दिया था। अमृतसर का शहर मुगलकाल बादशाहों की अमलदारी के भीतर था। सरहिन्द का नवाब औरंगजेब का सूबेदार था। सरहिन्द के आस पास पहाड़ी हिन्दू रियासतें थीं। गुरु गोविन्द सिंह ने आन्नदपुर को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया। पहाड़ी राजाओं के सिख प्रजाजन गुरु के दरबार में भेंट चढ़ाते थे। इन पहाड़ी राज्यों में गुरु गोविन्द सिंह के मसंद ( मसंद फारसी शब्द है जिसका अर्थ है मसनद या गद्दी ) रहते थे। मसनदों का काम था गुरु के भक्तों से भेंट लेकर गुरु के पास भेजना। सरहिन्द में भी गुरु का मसंद रहता था। सरहिन्द के मसंद और वहां दरबार में रहने वाले हिंदु राजा के प्रतिनिधियों में इसी बात को लेकर झगड़ा होता था राजा ने गुरु को लिखा “आपके मसंद हमारी रिआया से टैक्स वसूल कर रहे हैं आपको टैक्स वसूलने का हक नहीं है। आप अपने मसंदों का वापस बुला लीजिये”। गुरु गोविंद सिंह ने पता लगाकर पत्र का उत्तर दिया कि “मेरे मसंद किसी से कोई टैक्स व...