Aaj Ki Baat Mere Sath !
कल रोगी उर्फ योगी बोल गऐ, और यहां तक कह गये कि “जहां 10 प्रतिशत से ज्यादा मुसलमान होते हैं दंगे वहीं होते हैं” सवाल यह पैदा होता है कि गुजरात में पांच प्रतिशत मुसलमान हैं वहां दंगे क्यों हुऐ ? मुजफ्फरनगर के कुटबा, कुटबी, लिसाढ़, फुगाना, लाख, काकड़ा, सिसोली, कुल्हेड़ी, यह लिस्ट और भी तवील हो सकती है, इन गांवों में मुसलमानों का प्रतिशत मात्र एक प्रतिशत था तो यहां पर इन लोगों को क्यों मारा गया ? और उस पर विडंबना देखिये जिन लोगों के साथ हिंसक वारदातें हुईं उनका ताअल्लुक धर्म विशेष से जरूर था। मगर उनमें से अधिकतर को नमाज के दौरान की जाने नीयत तक का इल्म नहीं था। भूल गये क्या कहा था कुटबा के उस शमीम ने जिसके परिवार के चार लोगों का कत्ल किया गया था। उस 70 वर्षीय हाड़ मांस के आदमी ने कंपकपाती हुई जुबां से कहा था कि ‘हम न मुसलमान हैं न हिंदू, हम तो गरीब हैं’। बहरहाल योगी आदित्यनाथ ने एक बयान और दिया जिसमें कहा गया कि एक लड़की के बदले 100 लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराया जायेगा। इन दोनों बयानों की जरूरत आखिर इसी समय क्यों पड़ी ? क्या आदित्य को पहले मालूम नहीं था कि कहां दस प्रतिशत मुस्लिम होते हैं और कहां धर्म परिवर्तन हो रहा है ? अगर प्रतिशत की ही बात की जाये तो केरल में 25 प्रतिशत मुस्लिम हैं मगर वहां कभी दंगा नहीं हुआ। जिसकी वजह केरल में भाजपा का न होना है। खैर ये बयान क्यों दिये गये इसके गर्भ में जाना जरूरी है। अभी कुछ ही दिनों बाद उत्तर प्रदेश में उप चुनाव होने जा रहे हैं जिसकी बागडोर भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को सौंपी है। अब जब भाजपा काठ (लकड़ी) की बनी विकास की हांडी को भाड़ पर चढ़ा चुकी है तो फिर उसी पुराने ऐजेंडे पर लौट आई है। उसी के गर्भ से इन बयानों का जन्म होना शुरु हुआ है और होता रहेगा। अब सवाल है कि ऐसा क्यों होता है क्यों कोई आदित्यनाथ, प्रवीण तोगड़िया फिजा में जहर घोल देता है ? इसका सीधा सा उत्तर है कि कल जो लोग अकबर औवेसी के शर्मनाक बयान पर हाय तौबा कर रहे थे आज वही तथाकथित सैक्यूलर और शान्ति के पुजारी खामोश हैं। वे शायद नहीं जानते कि उनकी मुजरिमाना खामोशी ही हर रोजा तोगड़िया पैदा करती है, हर दिन किसी सिंघल का जन्म होता है, हर दिन किसी न किसी योगी आदित्यनाथ का जन्म होता है। और फिर इनकी देखा देख अकबर औवेसी भी पैदा हो जाता है। इनके पैदा होने से जो नुकसान होता है वह मेरा होता है या फिर तुम्हारा। बेहतर होता कि इनकी जुबानों के बंद करने के लिये खुद को सैक्यूलर कहने वाले सड़कों पर आते, सोश साईट्स पर अभियान चलाते, मगर ऐसा नहीं हो पाया अब इसका खामियाजा किस शहर को भुगतना पड़ेगा सिर्फ यह देखना बाकी है।
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