Aaj Ki Baat !
पिछले 65 साल से भारत में दंगों का वीभत्स इतिहास रहा है। जब भी कहीं भी दंगा होता है उसी दौरान अक्सर सवाल उठाये जाते हैं कि सरकार दंगा में रोकने में इतनी बेबस क्यों है ? एक तरफ दंगा रोकने और दंगाईयों को सबक सिखाने की बात होती हैं दूसरी ओर सरकारी मशीनरी उन्हें खुली छूट दे देती है कि जाओ और मार काट करो। ताजा मामला चर्चित गुजरात के नरोदा पाटिया नरसंहार का है जिसमें सजा याफ्ता माया कोडनानी को गुजरात हाईकोर्ट ने जमानत देदी है। अगस्त 2012 में गुजरात की एक विशेष अदालत ने माया कोडनानी और बजरंग दल नेता बाबू बजरंगी समेत 31 लोगों को नरोदा पटिया नरसंहार का दोषी करार दिया था. कोर्ट ने उन्हें “नरोदा इलाके में दंगों की सरगना” क़रार दिया था और 26 साल क़ैद की सज़ा सुनाई थी. इसके बाद नवंबर 2013 में गुजरात उच्च न्यायालय ने माया कोडनानी को स्वास्थ्य कारणों से तीन महीने की अस्थायी ज़मानत दे दी थी. माया कोडनानी आज फिर सलाखों से बाहर खुली हवा में सांस ले रही हैं, ऐसे में दंगों और दंगाईयों पर काबू पाया जाये तो कैसे ? अव्वल तो दंगाईयों को जल्दी से सजा नहीं मिल पाती अब अगर मिली भी थी तो उसे गुजरात न्यायपालिका ने बहाल कर दिया है। इस तरह के फैसले एक आम इंसान को यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि अगर आपके पास पैसा है, नाम है, राजनीतिक गलियारों में आपका दखल है तो फिर कोई अदालत आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। कोडनानी को जमानत देने से पहले कोर्ट को उन लोगों के बारे में भी सोचना था जो इनकी मानवीय त्रासदी की भेंट चढ़े हैं, जो लंगड़े, लूले हुऐ हैं, और एक बार उनके बारे में भी सोचना चाहिये था जो दंगों में मारे गये, मगर अफसोस उनके पास न जमानत है न जमानती, और ये दुनिया चाहकर भी उन्हें जमानत नहीं दे सकती। मगर कोडानानियों का क्या बुलेट प्रूफ गाड़ी,बुलेट प्रूफ कमरा, और ऐसे ही वस्त्र,फिर इनको क्यों और किससे खतरा होगा ? एक आम आदमी अगर अपनी भूख मिटाने के लिये रोटी चुराता (चोर का पक्ष नहीं लिया जा रहा है )है तो उसे जमानत मिलने में बरसों लग जाते हैं और यहां माया कोडनानी जैसे सैंकड़ों लोगों के कातिल अंदर बाहर का खेल खेल रहे हैं, वास्तव में अच्छे दिन आये हैं, हमारे या आपके नहीं बल्कि चोर बदमाश, गुंडे, हत्यारों, बलात्कारियों के। Shame On This
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