Aaj ki Baat
राजस्थान कैडर के अधिकारी पंकज चौधरी ने एक बार फिर ‘खाकी’ पर राजनेताओं के दबाव का भांडा फोड़ दिया है। पंकज चौधरी का कहना कि दंगे होते नहीं हैं कराये जाते हैं पूरी तरह दुरुस्त है। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि खाकी पूरी तरह से निष्पक्ष और दंगाई नहीं है। हां इतना जरूर है कि खाकी के रखवालों को निष्पक्षता से ड्यूटी करने की कीमत समय – समय पर चुकानी पड़ती रही है। वीएन राय से लेकर संजीव भट्ट, हेमंत करकरे से लेकर आज के पंकज चौधरी तक ये वे नाम हैं जो सच्चाई से ड्यूटी करने का खामियाजा चुकाते आये हैं। दंगा इस मुल्क की एसी बीमारी, और राजनीतिक दलों के लिये एसा वरदान है जिसे जब चाहे इस्तेमाल किया जा सकता है। जनहित के मुद्दों से ध्यान हटाने के लिये मंदिर मस्जिद को ‘विकास’ की राह में लाकर बैठा दिया जाता है। कुछ मरते हैं, कुछ घायल होते हैं, कुछ बर्बाद होते हैं, नतीजे में नफरतों की एसी फसल तैयार हो जाती है जिसके मन मस्तिष्क पर नफरत छा जाती है। अव्वल तो पंकज चौधरी जैसे अधिकारी बहुत कम हैं और जो हैं भी वे सियासत की भेंट चढ़े बैठे हैं, गुजरात के आईपीएस संजीव भट्ट से लेकर राजस्थान के पंकज चौधरी तक का जब तब जिक्र आयेगा तो पता चलेगा कि सच्चाई का रास्ता कितना मुश्किल, कठिन, पथरीला होता है। सच बोलिये पंकज जी आदमी मर तो उसी दिन जाता है जब जमीर का सौदा कर देता है, आपका जमीर जिंदा हैं आप मर तो बिल्कुल भी नहीं सकते।
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