Aaj Ki Baat !


बनारस हिंदू मुस्लिम एकता की एक अज़ीम मिसाल है, पर इस बीच चुनावी माहौल मे साम्प्रदायिकता की आग भड़काने की कोशिशें कुछ अलगाववादियों द्वारा की जा रही हैं ..... शहर मे बीजेपी द्वारा जगह जगह सोमनाथ मन्दिर का फोटो बने होर्डिग लगाए गए थे.... संघ ये बाबरी मस्जिद आन्दोलन के समय से ही कहता रहा है कि यदि आजादी के बाद नेहरू की जगह वल्लभ भाई पटेल प्रधानमंत्री बने होते तो जिस तरह उन्होंने महमूद गजनवी द्वारा ध्वस्त करे गए सोमनाथ मन्दिर का पुनर्निर्माण करवाया, उसी तरह वे अयोध्या (बाबरी मस्जिद ), काशी (ज्ञानवापी मस्जिद ) और मथुरा (शाही ईदगाह ) के मन्दिरो का भी पुनर्निर्माण करा देते .....
1992 मे बाबरी को शहीद करने के बाद बीजेपी और संघ कार्यकर्ताओं ने इस आशय के नारे भी लगाए थे कि काशी और मथुरा की मस्जिदें अभी बाकी हैं 
तो स्पष्ट है कि यद्यपि कुछ खुल कर नही कहा जा रहा, पर सोमनाथ मन्दिर के जरिए बनारस वासियों को काशी विश्वनाथ मन्दिर से सटी हुई ज्ञानवापी मस्जिद को हटाने के लिए उकसाया जा रहा है 
ज्ञानवापी मस्जिद यानी आलमगीरी मस्जिद के बारे मे अलगाववादियों द्वारा ये अफवाह उड़ाई जाती रही है कि इस मस्जिद को मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने विश्वनाथ मन्दिर ध्वस्त कर के उसपर बनवाया था ..... पर सच यहां भी कुछ और ही है 
ये सच है कि औरंगज़ेब ने विश्वनाथ मन्दिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया था पर उसका कारण था उस मन्दिर के प्रबंधक द्वारा देवता की मूर्ति के पीछे एक हिंदू रानी का बलात्कार करना, जिस कारण मन्दिर को अपवित्र मानते हुए बादशाह ने देवता की मूर्ति को किसी अन्य मन्दिर मे स्थानांतरित करने और मन्दिर को ढहा देने का आदेश दिया .... ये तथ्य दस्तावेजों के आधार पर डाक्टर पट्टाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "द फेदर्स एण्ड द स्टोन्स" मे सिद्ध किया है ...
सोचने की बात है कि जिस स्थान को बादशाह ने मन्दिर के भी रहने के लिए अपवित्र माना था, भला उसी स्थान को मस्जिद बनाने के लिए वो कैसे पवित्र मान लेते ?? 

कुछ नासमझ लोग ये तर्क देते हैं कि ये मस्जिद, विश्वनाथ मन्दिर के परिसर मे बनी है और मन्दिर मे बनी नन्दी की प्रतिमा का मुंह मस्जिद की ओर है जबकि नन्दी का मुंह सदैव भगवान की तरफ होता है .... दोनों बातों से सिद्ध होता है कि मस्जिद की जगह भी पहले एक मन्दिर था
...... इतिहास की कम जानकारी रखने के कारण ऐसे लोग खुद भी भ्रमित हो रहे हैं, और दूसरे लोगों को भी भ्रमित कर रहे हैं . क्योंकि नन्दी की प्रतिमा और मस्जिद के बराबर मे विश्वनाथ मन्दिर का निर्माण, मस्जिद के निर्माण के लगभग सौ वर्ष बाद 1780 मे करवाया गया था ।

वास्तव मे जिस समय बनारस की आलमगीरी मस्जिद बनाई गई थी, तब वहाँ कोई मन्दिर नहीं था.... मस्जिद के पास एक कुवां था
मुगल अधिपत्य से निकल कर काशी अवध के नवाब के अधिकार मे आई तो मीर रुस्तम अली ने यहाँ कई महत्वपूर्ण घाटों का निर्माण कराया फिर उसके बाद बनारस पर हिन्दू राजाओं राजा मनसा राम, उनके बाद राजा बलवन्त सिंह और उनके बाद राजा चेत सिंह का शासन रहा .. लेकिन किसी ने भी आलमगीरी मस्जिद या उसके समीप के कुवे पर मन्दिर बनाने का नहीं सोचा ...... कारण यही था कि उस स्थान पर पहले भी कोई मन्दिर नहीं था ( यदि 1770 से पहले भी हिन्दुओं की ऐसी आस्था होती क मस्जिद के पास वाले कुवें मे भगवान समा गए हैं, तो उस बीच तीन-तीन हिन्दू शासकों का बनारस पर राज रहा ....मन्दिर का निर्माण न सही कम से कम कुवें पर तो कोई निर्माण कराते )

परंतु जैसा हमेशा होता है 1770 मे काशी पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी का अधिकार हो गया .... इसके बाद ही ये अफवाहे उड़ाई गयीं कि औरन्गज़ेब ने विश्वनाथ मन्दिर तुड़वाकर उसपर ही आलमगीरी मस्जिद बनवाई थी और मन्दिर मे जो शिव लिंग स्थित था वो मन्दिर गिराए जाने से पूर्व स्वयं ही अंर्तध्यान होकर समीप के कुवें समा गया था...... 
हालांकि शिव लिंग के गायब होकर कुवें मे समा जाने की बात न तो तर्क पर खरी उतरती थी, और न ही आलमगीरी मस्जिद के किसी मन्दिर पर बने होने की बात किसी ठोस तथ्य पर आधारित थी.... लेकिन भोली भाली हिन्दू जनता ने इन बातों को सच मान लिया इन्दौर की मराठा महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने कुवें मे भगवान के स्थित होने की आस्था के कारण सन् 1780 में आलमगीरी मस्जिद के पास कुवे से थोड़ा हटकर विश्वनाथ मंदिर बनवाया, जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने 9 क्विंटल सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मण्डप 
बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नन्दी प्रतिमा स्थापित करवाई जिसका मुंह कुवें की ओर उन्होंने उसमें भगवान का वास समझकर बनवाया और कुवें को ज्ञानवापी यानी ज्ञान का कुवां कहा जाने लगा और इस कुवें के नाम पर ही आलमगीरी मस्जिद को एक और नाम दिया गया "ज्ञानवापी मस्जिद"

ध्यान देने की बात है कि मन्दिर मस्जिद एक पास बने होने के बावजूद बनारस मे कभी साम्प्रदायिक सौहार्द नहीं बिगड़ा .... लेकिन अब राजनीति के गंदे खेल को देखकर बनारस वासी चिंतित हैं
काशी विश्वनाथ मन्दिर के महंत श्री कुलपति तिवारी अपनी चिंता इन शब्दों मे व्यक्त करते हैं ......
"चुनाव मे काशी के साथ मजाक हो रहा है, उसकी दुखती रगो को दबाकर वोट बटोरने की कोशिश हो रही है । काशी विश्वनाथ मन्दिर के बगल मे ज्ञानवापी मस्जिद है, पर कभी आरती से अज़ान टकराई नही । नवाब अज़ीज़ुल मुल्क ने मन्दिर के सामने नौबतखाना बनवाया था जिसमें भोग आरती के समय शहनाई बजती थी । इस सौहार्द वाले माहौल को विकृत करने की कोशिशें की जा रही है ।चुनाव बाद विकास के तो नही पर विनाश के संकेत अवश्य देख रहा हूँ । बाबा से काशी को बचाए रखने की प्रार्थना करता हूँ ।"

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