Aaj Ki Baat !

हमारे बहुत से गैर मुस्लिम भाई अक्सर सवाल करते हैं कि क्या कोई गैर-मुस्लिम जो इस्लाम को तो नहीं मानता है मगर हर किस्म के भले कार्यों को अपनी क्षमतानुसार करता है, किसी का बुरा नहीं करता हर किस्म की बुराईयों से खुद को जितना हो सके बचाता रहता है। तो अल्लाह ऐसे शख्स के साथ क्या मामला करते हैं? या करेंगे? क्या उसे जन्नत मिलने की कोई सम्भावना है? वगैरह!

अल्लाह ने आमाल (कर्म) के फल देने का एक बहुत ही साधारण सा कानून बना रखा है, वह यह है की "आमाल का सारा दारोमदार नियतों पर है" यानि की जो जिस नियत (intention) के साथ कोई कर्म करेगा अल्लाह उसकी नियत के मुताबिक़ ही उसे बदला (फल) देंगे। यानि की आपका कर्म आपको फल देने के लिए आपकी नियत पर आश्रित (निर्भर) है।

बात यह नहीं है की किसका नाम अब्दुल्लाह है और किसका नाम भगत, बात दरअसल यह है की जब अब्दुल्लाह किसी भूखे को खाना खिलता है तो इस कर्म को करने के पीछे उसकी क्या नियत होती है? किस वजह से वह इस कर्म को करता है? और यदि उसे इस कर्म का बदला लेना हो तो वह उसका बदला किससे लेना चाहता है? और वह बदला भी किस तरह का चाहता है? कब और कहाँ चाहता है दुनिया या आख़िरत?

अब यदि अब्दुल्लाह ने भूखे को इस नियत से खाना खिलाया की शायद कभी उसकी यह नेकी कहीं काम आ जाये। तो जैसे उसकी नियत में अपने कर्म का अल्लाह से मिलने वाले फल के लिए शंका है संदेह है उसी तरह मुझे भी ऐसी नियतों के साथ किये जाने वाले कर्मों के फल के मिलने का संदेह है। अल्लाह ही जाने की ऐसी नियतों का क्या फायदा।

और अगर अब्दुल्लाह को अल्लाह के होने का यक़ीक़ है और अल्लाह की अताओं का भी यक़ीन है और साथ ही आख़िरत के हिसाब और किताब का भी यक़ीन है जन्नत और दोज़ख का भी यक़ीन है। इन सभी यक़ीन के साथ अब्दुल्लाह भूखे को इसलिए खाना खिलता है की अल्लाह उससे प्रसन्न हो जाएँ और उसे आख़िरत में इसका कोई बेहतरीन बदला अता फरमाएं। तो मुझे यक़ीन है की ऐसे यक़ीन वालों के लिए ही आख़िरत की कमियाबियाँ हैं।

रही बात यक़ीन न करने वालों और झुटलाने वालों की तो भाई जिसे अल्लाह के होने का ही यक़ीन नहीं तो वह अल्लाह से क्या चाहेगा? जिसे जन्नत के होने का यक़ीन नहीं वह जन्नत क्यों चाहेगा? जिसे जहन्नम का यक़ीन ही नहीं और उससे बचने के किये क्या करना चाहेगा?

अल्लाह का ऐसा कानून नहीं है कि हमारे कर्म करने से जैसा घटित हो उसके अनुसार हमें फल भोगना ही हो, बल्कि सत्य तो यह है कि किसी भी घटना का घटित होना तो सिर्फ अल्लाह ही के हाथ में है इसलिए हमारे कर्म से जो भी घटित होता है अल्लाह हमें उसके अनुसार शुभ या अशुभ फल भोगने को नहीं देते बल्कि कर्म करते समय हमारे दिल में जैसी नियत होती है उसके अनुसार हमें शुभ या अशुभ फल देते हैं। यदि हमारी नियत किसी भले काम को अंजाम देने की रहती है और हम ऐसा कर पाने में सफल भी हो जाते है तो कर्म करते वक़्त तो हमें उस कर्म के करने की नेकी तो मिलती ही है पर कर्म को फलित होता देख जब-जब हम प्रसन्न होते हैं (गुरूर और घमंड नहीं करते) तब-तब हमे और नेकियां मिलती रहती हैं क्यों की आमाल का दारोमदार नियतों पर है।

दुर्भाग्य से यदि हमसे कोई ऐसा कर्म हो जाता है जिसके कारणवस किसी का कोई नुकसान हो जाता है मगर हमारा इरादा किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं रहता तो इस घटना का अल्लाह हम पर कोई दोष नहीं डालते। क्योंकि जब-जब जो-जो होता है सब अल्लाह ही के हाथ है अल्लाह ही की मर्ज़ी से होता है। अल्लाह तो हमारे दिलों को देखते हैं। इसी लिए यदि हम अपने किसी बुरे कर्म से दुखी हो कर पछतावा महसूस करते हैं और अपने उस कृत्य के लिए अल्लाह से माफ़ी चाहते है तो भले ही हमने उस बुरे कर्म को बुरे इरादे से भी किया हो अल्लाह उसके लिए हमे माफ़ कर देते हैं। क्योंकि आमाल का सारा दारोमदार नियतों पर है।

तो जो भी अल्लाह पर यक़ीन रखते हुए उससे जिस तरह की भी उम्मीद करेगा अल्लाह उसे नाउम्मीद नहीं होने देंगे।

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