Aaj ki baat! Kuchh Hamari Bhi Suno !

यह सवाल राजनीतिक दलों से बाद में किया जाये पहले मुसलमानों से किया जाये कि उन्होंने अपने हालात सुधारने के लिये क्या किया ? मुसलमान अगर गंदी बस्तियों में रहते हैं तो उन्हें साफ करने की जिम्मेदारी नगर निगम की ज्यादा है या फिर उन मुसलमानों की जो वहां से रोजाना नाक पर रुमाल रखकर गुजरते हैं ? मुसलमानों के बच्चे अगर स्कूल की बजाय ढ़ाबे पर चाय का गिलास पकड़ा रहे हैं तो क्या इसमें भी किसी नेता का दोष है ? मुसलमान, सिर्फ मुसमलान ही क्या इस देश की अवाम ही क्यों नहीं सोचती कि नेता कभी नहीं चाहते कि जनता के बच्चे भी पढ़ जायें, क्योंकि पढ़ गये तो सवाल करेंगे, वे सवाल एसे होंगे जिनका जवाब किसी नेता से नहीं दिया जायेगा। जिन मुसलमानों को औवेसी में जादुई छ़ड़ी, सालार ए कौम, रफीके मिल्लत नजर आ रहा है, वह औवेसी खुद लंदन से पढ़कर आया है। मगर सलीम लंगड़े, पप्पू चाय वाले, सुलेमान दर्जी, कल्लन धोबी, वे कल भी अपना पेशावर काम कर रहे थे और उनके बच्चे भी उसी काम में लग गये हैं। मुझे लगता है कि मुसलमानों को मौजूदा वक्त की सियासत से किनारा कर लेना चाहिये और खुद को शिक्षा की तरफ मुतव्वजो करना चाहिये। मुसमलानों को आधी से ज्यादा बीमारियां जो विरसे में मिली हुई हैं वे सियासत की ही देने हैं।

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