Aaj ki Baat

उस अदालत के जज को क्या कहा जाये जिसे मदरसों पर लहराने वाला तिरंगा नजर नहीं आता ? क्या कहा जाये अब उन्हें आजादी की लड़ाई में मदरसों का योगदान भी न नजर आये ? क्या कहा जाये जब दारूल उलूम के संस्थापक सदस्य रहे हजरत हुसैन अहमद मदनी साहब के नाम से भारत सरकार ने डाक टिकट जारी कर रखा हो और उसके बाद भी अदालत कहे कि मदरसों पर तिरंगा लहराना अनिवार्य है। गलती अदालत की नहीं है, दरअस्ल भारतीय मुसलमान जरूरत से ज्यादा वफादार है। नहीं तो तथाकथित राष्ट्रभक्तों के मुख्यालय पर ब्रांच आफिस पर तिरंगा नहीं इकरंगा लहराया जाता है। उस पर न तो किसी को आपत्ती है न विपत्ती। न किसी अदालत को नजर आता कि वहां तिरंगा क्यों नहीं लहराया जाता ? जहां पहले से ही तिरंगा लहराया जाता है वहां पर तिरंगा लहराने का आदेश और जहां तिरंगे को खत्म करने की साजिशें रची जाती हैं वहां पर मौन आखिर क्या समझें इसको ? यह मुसलमानों को अहसास ए कमतरी में धकेलने का कूकृत्य नहीं तो और क्या है। 
जो मुल्क के दुश्मन हैं वही यार ए वतन हैं
हम आधी सदी बाद भी गद्दार ए वतन हैं।

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