Aaj Ki Bat !

प्रिय 

वीएस संपत महोदय
मुख्य चुनाव आयुक्त, भारत सरकार
महोदय 
आज अखबार में पढ़ा कि भड़काऊ भाषण देने के मामले में भाजपा नेता अमित शाह पर लगे प्रतिबंध को आयोग ने वापस ले लिया है, वहीं दूसरी ओर यह भी लिखा था कि सपा नेता आजम खां पर प्रतिबंध बरकार रहेगा, कारण जो भी रहा हो, मगर आज़म ने गलत ही क्या कहा था ? जब तथाकथित राष्ट्रवादी यह कहते हैं कि मुसलमान अल्लाह हु अकबर का नारा देकर बम फोड़ते हैं तब कहीं से कोई आवाज नहीं उठती, जब उन्हें पाकिस्तानी कहा जाता है तब भी तमाम ऐजंसियां हरकत में नहीं आतीं उन लोगों की जुबां पर भी ताले लह जाते हैं जो दिन रात सैक्यूलरिज्म की दुहाई देते नहीं थकते. ऐसे में अगर आज़म ने कारगिल का उल्लेख करते हुऐ कह दिया कि वह जंग पाकिस्तान से भारतीय मुसलमानों ने अल्लाहु अकबर के नारे साथ जीती थी तो इसमें हर्ज क्या है ? मगर जिस शख्स को आपने माफी के काबिल समझकर उससे प्रतिबंध हटाया है आप यह क्यों भूल गये कि उसका दामन इशरत जहां, सादिक जमाल, सोहराबुद्दीन जैसे मासूमों के खून से रंगा है ? जबसे उसने बदला लेने की बात कही है तभी से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुछ अजीब तरह की घटनाऐं सामने आ रही हैं, अभी चार दिन पहले की ही बात है मेरठ के मोदीपुरम में NH 58 पर स्थित पंडित ढ़ाबे पर हमारे कुछ साथी जिनमें दो मौलाना भी शामिल थे मुजफ्फरनगर से आते वक्त चाय पीने के लिये रुके थे वहीं पर कुछ लड़के आये और हमें चिढ़ाने की गरज से मुसलमानों पर भड़ास निकालते हुऐ अपश्ब्द कहने लगे, वे बार बार बदले वाले बयान की सराहना कर रहे थे। और आपने इस मानसिकता के जनक को माफी दे दी जो यकीनन उस मानसिकता को बढ़ायेगी जिनकी मानसिकता संप्रदाय विशेष के प्रती बदला लेने वाली है। आपको इतना तो इल्म होना ही चाहिये था कि आप एक ऐसे शख्स कको माफी दे रहे हो जिसके आने से उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिकरण तेजी से हुआ, और आये दिन समाचार पत्रों में शहरों के जलने की खबरें आने लगीं। फिर आपकी इस नर्मी को क्या माना जाये, एक शख्स शहीदों में मुसलमानों की हिस्सेदारी बताता है उसके बाद भी उस पर प्रतिबंध बरकरार रहता है, एक खुले आम बदला लेने को कहता है उसे बरी कर दिया जाता है यह तो न्याय नहीं हुआ आयुक्त महोदय। आपको यह भी इल्म होना चाहिये कि हर चुनाव में इन जैसों की गलतबयानी की वजह से जो माहौल खराब होता है उसका खामियाजा निर्दोष जनता को चुनाव के बाद सांप्रदायिक दंगों के रूप में भुगतना पड़ता है फिर क्यों आपने इतनी नर्मी से काम लिया ? क्या माफी मांगने से जुर्म कम हो जाता है ? अगर यह मान भी लिया जाये कि जुर्म कम हो गया तो फिर अदालत किसलिये है ? फिर तो हर अपराधी को छूट दे दी जाये कि वह माफी मांगे अगर ऐसा होगा तो जेल खाने भी भारत की जमीन से गायब हो जायेंगे ? मगर उस मानसिकता का क्या होगा जो इनके मुख से निकली जहरीली बात को ही ईश्वरीय वाणी से भी ज्यादा महत्तव देती है ? क्या आपने सोचा जब से बदला लेने वाला बयान आया है तभी से कुछ लोगों के हौसले बुलंद हैं ये लोग कौन हैं मुझसे बेहतर आप जानते होंगे ? बेहतर होता कि आप ऐसे शख्स को जिसके दिल में प्रतिशोध की ज्वाला भड़क रही हो उसे अंडमान निकोबार भेज देते ? आज फिर आपने देश के सैक्यूलर तबके और मुसलमानों को यह कहने का मौका दे दिया कि उनके साथ भेदभाव होता है, आखिर ये अस्थिर करने वाले निर्णय देकर भारत से कौनसी हमदर्दी का सबूत दे रहे हैं। 

आपका शुभांकक्षी
एक आम नागरिक

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