Aaj Ki Bat !


मानव इतिहास का अध्ययन करने से पता चलता है कि इस धरती पर ईश्वर ने अलग अलग जगह मानव नहीं बसाए अपितु एक ही मानव से सारा संसार फैला है। निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान दें, आपके अधिकांश संदेह खत्म हो जाएंगे।

सारे मानव का मूलवंश एक ही पुरूष तक पहुंचता है, ईश्वर ने सर्वप्रथम
विश्व के एक छोटे से कोने धरती पर मानव का एक जोड़ा पैदा किया जिनको मुस्लिम 'आदम' (अलेही सलाम) तथा 'हव्वा' कहते हैं. उन्हीं दोनों पति-पत्नी से मनुष्य की उत्पत्ति का आरम्भ हुआ जिनको हिन्दू मनु और शतरूपा कहते
हैं तो क्रिस्चियन 'एडम' और 'ईव'. जिनका विस्तारपूर्वक उल्लेख
पवित्र ग्रन्थ क़ुरआन(230-38) तथा भविष्य पुराण प्रतिसर्ग पर्व खण्ड 1 अध्याय 4 और बाइबल उत्पत्ति (2/6-25) और दूसरे अनेक ग्रन्थों में किया गया है।

उनका जो धर्म था उसी को हम इस्लाम कहते हैं जो आज तक सुरक्षित है।
ईश्वर ने मानव को संसार में बसाया तो अपने बसाने के उद्देश्य से अवगत कराने के लिए हर युग में मानव ही में से कुछ पवित्र लोगों का चयन किया ताकि वह मानव मार्गदर्शन कर सकें। वह हर देश और हर युग में भेजे गए,
उनकी संख्या एक लाख चौबीस हज़ार तक पहुंचती है, इनको इस्लाम में ईशदूत या पैगम्बर या रसूल कहते हैं. वह अपने समाज के श्रेष्ट लोगों में से होते थे तथा हर प्रकार के दोषों से मुक्त होते थे। उन सब का संदेश एक ही था कि केवल एक ईश्वर की पूजा की जाए, मुर्ति-पूजा से बचा जाए तथा सारे मानव समान हैं, उनमें जाति अथवा वंश के आधार पर कोई भेदभाव नहीं।
कई ईशदूत का संदेश उन्हीं की जाति तक सीमित होता था क्योंकि मानव ने
इतनी प्रगति न की थी तथा एक देश का दूसरे देशों से सम्बन्ध नहीं था। उनके समर्थन के लिए उनको कुछ चमत्कारिक शक्तिया (मौजज़े) भी दी जाती थीं, जैसे मुर्दे को जीवित कर देना, अंधे की आँखें सही कर देना, चाँद को दो टूकड़े कर देना आदि। 

लेकिन यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि पहले तो लोगों ने उन्हें ईश्दूत मानने से इनकार किया कि उनके बारे में कहते थे की वह तो हमारे ही जैसा शरीर रखने वाले हैं फिर जब उनमें असाधारण गुण देख कर उन पर श्रृद्धा भरी नज़र डाली तो किसी ने उनकी बात को मान लिया. ऐसे लोगो इस्लाम पर कायम रहे और किसी समूह ने उन्हें ईश्वर का अवतार मान लिया तो किसी ने उन्हें ईश्वर की सन्तान मान कर उन्हीं की पूजा आरम्भ कर दी। ऐसे लोग इस्लाम से बहार हो गए और अपने धर्म की शुरुआत उन्होंने खुद की. 

ईशदूत के अलावा भी कई अच्छे लोगों को ऐसी उपाधि दे दी गई. उदाहरण स्वरूप गौतम बुद्ध को देखिए, बौद्ध मत के गहरे अध्ययन से केवल इतना पता चलता है कि उन्हों ने ब्रह्मणवाद की बहुत सी ग़लतियों की सुधार की थी तथा विभिन्न पूज्यों का खंडन किया था और कहा था की में सिर्फ ईश्वर का रास्ता बताने वाला हूँ, ईश्वर नहीं. परन्तु उनकी मृत्यु के एक शताब्दी भी न गुज़री थी कि वैशाली की सभा में उनके अनुयाइयों ने उनकी सारी शिक्षाओं को बदल डाला और बुद्ध के नाम से ऐसे विश्वास नियत किए जिसमें ईश्वर का कहीं भी कोई वजूद नहीं था। फिर तीन चार शताब्दियों के भीतर बौद्ध धर्म के पंडितों ने कश्मीर में आयोजित एक सभा में उन्हें सामूहिक रूप से ईश्वर का अवतार मान लिया।

इसी तरह कई युग के लोगों ने अपने राजा-महाराजो को ये उपाधि दे दी. राजा अपने दरबार में बहुत सारे कलाकारों के साथ-साथ कवि भी रखते थे, ऐसे कवि दरबार में बने रहने के लिए राजा की खूब प्रशंसा लिखा करते थे, यहाँ तक की उन्हें ईश्वर से मिला दिया करते थे. एक लम्बा समय बीतने के बाद उनकी लिखी कविताओं से भी लोग अपने स्वर्गवासी राजा को ईश्वर समझने लगते थे. इसके अलावा इन्सान जिस दुसरे इन्सान या जानवर से डरा या जिसको ताकतवर पाया या जिससे लाभ दिखा उसकी पूजा शुरू कर दी.

ईशदूत के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. इसे बुद्धि की दुर्बलता कहिए कि जिन संदेष्टाओं नें मानव को एक ईश्वर की ओर बुलाया था उन्हीं को ईश्वर का रूप दे दिया गया। हज़रत मूसा (अलेह सलाम) को यहूदी पूजने लगे जिनको वो मोसेस कहते हैं, हज़रत ईसा (अलेह सलाम) को क्रिस्चियन ने ईश्वर का बेटा मान लिया, वो उनको जीसस कहते हैं, और वो उनको पूजने लगे. हालाँकि ये दोनों भी ईशदूत ही थे,

इसे यूं समझिए कि यदि कोई पत्रवाहक एक व्यक्ति के पास उसके पिता का पत्र पहुंचाता है तो उसका कर्तव्य बनता है कि पत्र को पढ़े ताकि अपने पिता का संदेश पा सके परन्तु यदि वह पत्र में पाए जाने वाले संदेश को बन्द कर के रख दे और पत्रवाहक का ऐसा आदर सम्मान करने लगे कि उसे ही पिता का महत्व दे बैठे तो इसे क्या नाम दिया जाएगा....आप स्वयं समझ सकते हैं। इस तरह अलग-अलग धर्म बनते गए.

आखिर में आज से १४०० साल पहले ईश्वर ने भटके हुए लोगों को सही रास्ता दिखाने के लिए विश्वनायक को दुनिया में भेजा जिन्हें हम हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) कहते हैं, अब उनके पश्चात कोई संदेष्टा आने वाला नहीं है, ईश्वर ने अन्तिम संदेष्टा हज़रत मुहम्मद को सम्पूर्ण मानव जाति का मार्गदर्शक बना कर भेजा और आप पर अन्तिम ग्रन्थ क़ुरआन अवतरित किया जिसका संदेश सम्पूर्ण मानव जाति के लिए है ना की किसी धर्म विशेष के लिए । हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) के समान धरती ने न किसी को देखा न देख सकती है। वही कल्कि अवतार हैं जिनकी हिन्दु समाज में आज प्रतीक्षा हो रही है। 

दूसरी चीज़ जो आपे मन में खटक सकती है कि जब ईश्वर के भेजे सारे ईशदूत और धार्मिक ग्रन्थ सच्चे थे तो फिर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) जो बातें लेकर आये उनको मानना क्यों ज़रूरी हैं? पहले वालों की बात भी तो मानी जा सकती है.

आज की वर्तमान दुनिया मे इसका जवाब बिल्कुल आसान है, हमारे देश की एक संसद (पार्लियामेंट) है यहॉ का एक संविधान है। यहॉ जितने प्रधानमंत्री आये वे सब भारत के वास्तविक प्रधानमंत्री थे, पंडित जवाहरलाल नेहरू, शास्त्री जी, फिर इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी फिर वी0पी0 सिंह इत्यादि, देश की ज़रूरत और समय के अनुकूल जो कानून और अध्यादेश उन्होंने पास किये वे सब भारत के थे मगर अब जो वर्तमान प्रधानमंत्री है उनकी संसद और सरकार जो भी कानून में संशोधन करेगी उससे पुराना कानून समाप्त हो जायेगा, और भारत के हर नागरिक के लिए अनिवार्य होगा कि उस नया संशोधित कानून का पालन करें। यदि अब कोई भारतीय नागरिक यह कहे कि जब इंदिरा गाँधी असली प्रधानमंत्री उनके ही कानून मानूंगा, इस नये प्रधानमंत्री के कानून में नहीं मानता और न उनके द्वारा लगाये गये टैक्स दूंगा तो ऐसे आदमी को हर कोई भारत विरोधी कहेगा और उसे सजा का पात्र समझा जायेगां

हज़रत मूसा अलेही सलाम (मोसेस) और हज़रत ईसा अलेही सलाम (जीसस क्राइस्ट) के बाद हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) को भेजा गया. ये सारे ईशदूत एक ही कड़ी के हैं. सबसे पहले ईशदूत दुनिया के सबसे पहले इन्सान आदम (अलेह सलाम) स्वयं थे, उन्होंने अपने बच्चों को सही रास्ता दिखाया, लेकिन उनके दुनिया से जाने के बाद कुछ बच्चों ने अपनी राह ले ली. और सबसे आखरी हज़रत मुहम्मद हैं (सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम) जो की करीब १४०० साल पहले दुनिया में भेजे गए, इन दोनों के बीच समय-समय पर करीब १,२४००० ईशदूत भेजे गए. जिनमे हज़रत मूसा (अलेह सलाम) और हज़रत ईसा (अलेह सलाम) भी शामिल हैं. लेकिन मुस्लिम इनको ईशदूत ही मानते हैं और इनकी पूजा नहीं करते, मुस्लिम सिर्फ उस एक ईश्वर की पूजा करते हैं जिसने इन सब ईशदूतों को अपनी (इश्वर की) पहचान बताने और इंसानों को सही रास्ता दिखाने भेजा था. सारे ईशदूत भी एक ईश्वर की पूजा करते थे और दुसरे इंसानों को भी ऐसा ही करने को बोलते थे. इसलिए अब तमाम रसूलों और धार्मिक ग्रन्थों को सच्चा मानते हुए भी अंतिम ईशदूत हज़रत मुहम्मद पर ईमान लाना हर मनुष्य के लिए अनिवार्य है। और ऐसा करने वाला ही मुस्लिम कहलाता है. और जिन्होंने नहीं माना आज वो क्रिस्चियन और यहूदी बन कर रह रहे हैं.

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