Aaj Ki bat !
वोट कि शरई हैसियत ?
वोट की मुखतलिफ हैसियते बनती है ? (1) शहादत और गवाही करना (2) शफाअत करना (3) वकालत करना (4) मशवरा देना !
इन सबका मतलब एक ही है! बुनियादी तौर पर वोट कि हैसियत शहादत और गवाही कि है! इसलिये वोट देने का मतलब इस बात की शहादत देना है कि हम जिस उम्मीदवार को वोट दे रहे है वह हमारी जनकारी मे कौम व मिल्लत का खैर खोअह और कौम की खिदमत करने और उसकी नुमायनदगी की सलाहियत मे वह दुसरे उम्मीदवार से बेहतर है ? वह कौम कि सारी ज़िम्मेदारी को निभाने कि सलाहियत रखता है और इसमे वह अमानत व दयानतदार भी है!
अब अगर वोट देने वाले ने सबकुछ जानने के बवाजूद किसी न अहेल को वोट दिया हलाकि उससे बेहतर उम्मीदवार मौजूद था फिर भी अपने ताल्लुक़ात अपनी बिरादरी अपनी रिशतेदारी या और किसी बिना पर गद्दार, ज़ालिम, क़ातिल,और ना अहेल उम्मीदवार को वोट दिया तो दोस्तो यह झूटी गवाही हो गयी ?
जो गुनाहे क़बीरा और दुनिया वा अखीरत के लिये बवाले जान है!
अब अगर हमने ईमानदार उम्मीदवार की सिफारिश कि है तो इस पर हमे सवाब मिलेगा और अगर जानबूझ कर हमने किसी गलत ना अहेल ज़ालिम उम्मीदवार को वोट दिया तो यह बुरी सिफारिश हो गयी और इस पर हम गुनाहगार होगे ? बल्की जिस ज़ालिम और ना अहेल को हमने वोट दिया है अगर वह क़ामयाब हो गया तो वह इस ओहदे पर रहकर जब तक कौम के साथ ज़ुल्म वा ज़्यादती करेगा और लोगो के हक़ मारेगा इन सब गुनाहो मे वोटर बराबर का शरीक रहेगा ? इसलिये कि सिफारिश जितनी अहेम चीज़ की होती है और जिस क़द्र इसके असरात ज़ाहिर होते है इसी ऐतेबार से सिफारशी सज़ा और जज़ा का हक़दार होता है!
"जो शख्स अच्छे काम की सिफ़ारिश करे तो उसको भी उस काम के सवाब से हिस्सा मिलेगा और जो बुरे काम की सिफ़ारिश करे तो उसको भी उसी काम की सज़ा का हिस्सा मिलेगा और ख़ुदा तो हर चीज़ पर निगेहबान है"
(सुरे निसा 85)
दोस्तो अब एक नज़र इस हदीसे करिमा पर भी डाल लेते है ?
रसुले करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने एक मौक़े पर सहाब ऐ करीम (रज़ि) से खिताब करते हुये इरशाद फरमाया "क्या तुमको सबसे बडा गुनाह बताऊ"? सहाबा (रज़ि) ने अर्ज़ किया क्यो नही या रसूल्ललाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम फिर आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया "अल्लाह के साथ किसी को शरीक करना और वालदैन कि नाफरमानी करना" फिर आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम सही से बैढ गये हालाके इससे पहले टेक लगाये हुये थे और फरमाया "सुनो शाहादत ज़ोर यानी झूटी गवाही" रावी कहते है कि आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम बराबर दोहराते रहे! यहा तक कि हम लोगो को ख्याल हुआ कि काश आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम खामोश हो जाते!
(सही बुखारी 1/362)
इसलिये दोस्तो अपना वोट डालते वक्त खुब सोच समझ कर इमान्दार अमानतदार और एहलियत रखने वाले शक्स को ही वोट देना चाहिये! क्योकि यह अमल सिर्फ सियासी और दुनयाबी फायदे का ही नही है बल्कि इसके पीछे अताअत वा मासियत और गुनाह व सवाब भी है !
मै यहा पर एक बात और बताना चाहता हू कि मै इस पोस्ट के ज़रीये किसी भी पार्टी को सपोर्ट करने की बात नही कह रहा हू जैसा कि अकसर मेरी पोस्टो से कुछ लोग बिना समझे गलत मतलब निकालने लगते है और फिर मुझे मेरे ही अपने भाई ना जाने किस किस का एजेन्ट बताने लगते है और बडे ही अच्छे क़लिमात से नवज़ते है! मैने यहा पर सिर्फ वोट की हक़िक़त बताने की एक अदना सी कोशिश कि है और उसके फायदे वा नुक़सान कि तरफ इशारा किया है?
बाकी आप सब खुद समझदार है मशाअल्लाह!
वोट की मुखतलिफ हैसियते बनती है ? (1) शहादत और गवाही करना (2) शफाअत करना (3) वकालत करना (4) मशवरा देना !
इन सबका मतलब एक ही है! बुनियादी तौर पर वोट कि हैसियत शहादत और गवाही कि है! इसलिये वोट देने का मतलब इस बात की शहादत देना है कि हम जिस उम्मीदवार को वोट दे रहे है वह हमारी जनकारी मे कौम व मिल्लत का खैर खोअह और कौम की खिदमत करने और उसकी नुमायनदगी की सलाहियत मे वह दुसरे उम्मीदवार से बेहतर है ? वह कौम कि सारी ज़िम्मेदारी को निभाने कि सलाहियत रखता है और इसमे वह अमानत व दयानतदार भी है!
अब अगर वोट देने वाले ने सबकुछ जानने के बवाजूद किसी न अहेल को वोट दिया हलाकि उससे बेहतर उम्मीदवार मौजूद था फिर भी अपने ताल्लुक़ात अपनी बिरादरी अपनी रिशतेदारी या और किसी बिना पर गद्दार, ज़ालिम, क़ातिल,और ना अहेल उम्मीदवार को वोट दिया तो दोस्तो यह झूटी गवाही हो गयी ?
जो गुनाहे क़बीरा और दुनिया वा अखीरत के लिये बवाले जान है!
अब अगर हमने ईमानदार उम्मीदवार की सिफारिश कि है तो इस पर हमे सवाब मिलेगा और अगर जानबूझ कर हमने किसी गलत ना अहेल ज़ालिम उम्मीदवार को वोट दिया तो यह बुरी सिफारिश हो गयी और इस पर हम गुनाहगार होगे ? बल्की जिस ज़ालिम और ना अहेल को हमने वोट दिया है अगर वह क़ामयाब हो गया तो वह इस ओहदे पर रहकर जब तक कौम के साथ ज़ुल्म वा ज़्यादती करेगा और लोगो के हक़ मारेगा इन सब गुनाहो मे वोटर बराबर का शरीक रहेगा ? इसलिये कि सिफारिश जितनी अहेम चीज़ की होती है और जिस क़द्र इसके असरात ज़ाहिर होते है इसी ऐतेबार से सिफारशी सज़ा और जज़ा का हक़दार होता है!
"जो शख्स अच्छे काम की सिफ़ारिश करे तो उसको भी उस काम के सवाब से हिस्सा मिलेगा और जो बुरे काम की सिफ़ारिश करे तो उसको भी उसी काम की सज़ा का हिस्सा मिलेगा और ख़ुदा तो हर चीज़ पर निगेहबान है"
(सुरे निसा 85)
दोस्तो अब एक नज़र इस हदीसे करिमा पर भी डाल लेते है ?
रसुले करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने एक मौक़े पर सहाब ऐ करीम (रज़ि) से खिताब करते हुये इरशाद फरमाया "क्या तुमको सबसे बडा गुनाह बताऊ"? सहाबा (रज़ि) ने अर्ज़ किया क्यो नही या रसूल्ललाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम फिर आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया "अल्लाह के साथ किसी को शरीक करना और वालदैन कि नाफरमानी करना" फिर आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम सही से बैढ गये हालाके इससे पहले टेक लगाये हुये थे और फरमाया "सुनो शाहादत ज़ोर यानी झूटी गवाही" रावी कहते है कि आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम बराबर दोहराते रहे! यहा तक कि हम लोगो को ख्याल हुआ कि काश आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम खामोश हो जाते!
(सही बुखारी 1/362)
इसलिये दोस्तो अपना वोट डालते वक्त खुब सोच समझ कर इमान्दार अमानतदार और एहलियत रखने वाले शक्स को ही वोट देना चाहिये! क्योकि यह अमल सिर्फ सियासी और दुनयाबी फायदे का ही नही है बल्कि इसके पीछे अताअत वा मासियत और गुनाह व सवाब भी है !
मै यहा पर एक बात और बताना चाहता हू कि मै इस पोस्ट के ज़रीये किसी भी पार्टी को सपोर्ट करने की बात नही कह रहा हू जैसा कि अकसर मेरी पोस्टो से कुछ लोग बिना समझे गलत मतलब निकालने लगते है और फिर मुझे मेरे ही अपने भाई ना जाने किस किस का एजेन्ट बताने लगते है और बडे ही अच्छे क़लिमात से नवज़ते है! मैने यहा पर सिर्फ वोट की हक़िक़त बताने की एक अदना सी कोशिश कि है और उसके फायदे वा नुक़सान कि तरफ इशारा किया है?
बाकी आप सब खुद समझदार है मशाअल्लाह!
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