Aaj Ki Bat !
बाबरी मस्जिद की शहादत का जिक्र पहले जब भी आता था हमारा दिल दुख से भर जाता था और हम बड़े मलाल से मजाज़ सुल्तानपुरी साहब का शेर पढ़ के रह जाते थे -
"अबरहा ढाता रहा तेरा मकां, तू चुप रहा ।
क्यों नही भेजा अबाबीलो का लश्कर ऐ ख़ुदा ॥"
लेकिन जब से बाबरी को शहीद करने मे अगुवा रहे योगेन्द्र पाल और उनके दोस्त पूर्व शिवसेना युवा शाखा अध्यक्ष बलबीर सिंह जी की आपबीती पढ़ी तो ये सोच कर दिल को एक सुकून सा,मिल गया कि अल्लाह हम बन्दो से बेखबर नहीं वो दीन की भी हिफाज़त करता है और दीन वालों की भी, और अल्लाह जिसको जिस बात से चाहे हिदायत अता फरमा दे
6 दिसम्बर 1992 को बलबीर और योगेन्द्र ने बड़े जोश खरोश से मस्जिद की शहादत मे हिस्सा लिया था, फिर योगेंद्र ने बाबरी मस्जिद की दो ईंटें लाकर रखीं और माईक से एलान किया कि राम मन्दिर पर बने ढाँचे की ईंटें सौभाग्य से हमारे तकदीर में आ गयी हैं। सब हिन्दू भाई आकर उन पर पेशाब करें। फिर किया था, भीड लग गयी। हर कोई आता था और उन ईंटों पर हिकारत से पेशाब करता था।
मस्जिद के मालिक को अपनी शान भी दिखानी थी। चार पाँच रोज़ के बाद योगेंद्र का दिमाग खराब हो गया। पागल होकर वह नंगा रहने लगा, उस पागलपन में वह बार-बार अपनी माँ से गंदे जज्बे से लिपट जाता।
उस के वालिद बहुत परेशान हुए। बहुत इलाज करवाया लेकिन योगेन्द्र का पागलपन और ही बढ़ता चला गया। एक रोज़ योगेन्द्र के बाप बाहर गए, तो उसने अपनी माँ के साथ गंदी हरकत करनी चाही। मां ने शौर मचाया। मौहल्ले वाले आये तो जान बची। उस को जन्जीरों में बाँध दिया गया। योगेंद्र के वालिद इज्जत वाले आदमी थे, थक हार के उन्होंने उसको गोली मारने का इरादा कर लिया
उस वक्त उन्हे किसी ने सोनीपत की मस्जिद मे आने वाले बड़े मौलवी जी के बारे मे बताया की उन की दुवा मे बड़ी तासीर है वो जरूर आपके बेटे को ठीक कर देंगे, उसी बातचीत मे चौधरी साहब ने ये फैसला कर लिया कि अगर योगेन्द्र ठीक हो गया तो वो इस्लाम कुबूल कर लेंगे
कुछ दिन बाद चौधरी साहब योगेन्द्र को ले कर मौलवी साहब से मिलने पहुंचे योगेन्द्र उस वक्त भी नंग धड़न्ग, जन्जीरो मे बंधे हुए थे
चौधरी साहब ने मौलाना साहब से रो रो के अपनी मुसीबत बयान की .. मौलाना साहब ने कहा खुदा का घर गिरा कर इन्होंने बहुत बड़ा गुनाह कर डाला है, । अब हमारे बस में कुछ भी नहीं है। बस यह है कि आप भी और हम भी उस मालिक के सामने गिडगिडाएँ और माफी माँगे
मौलाना साहब ने कहा, जब तक हम मस्जिद में प्रोग्राम से फारिग हों आप अपने ध्यान को मालिक की तरफ लगाकर सच्चे दिल से माफी और प्रार्थना करें कि मालिक मेरी मुश्किल को आपके अलावा कोई नहीं हटा सकता।
मौलाना साहब मस्जिद में गये नमाज़ पढ़ी, थोडी देर तकरीर की और दुआ की। मौलाना साहब ने सभी लोगों से चौधरी साहब के लिए दुआ को कहा, प्रोग्राम के बाद मस्जिद में नाश्ता हुआ, नाश्ते से फारिग होकर मसिजद से बाहर निकले तो मालिक का करम कि योगेंद्र ने अपने बाप की पगडी उतारकर अपने नंगे जिस्म पर लपेट ली थी और ठीक-ठाक अपने वालिद से बात कर रहा था। सब लोग बहुत खुश हुए।
चौधरी साहब को इस्लाम कुबूल करने का अपना वादा याद था ... जब वो अपने फैसले पर अमल करने चले तो योगेन्द्र ने पूछा ‘‘पिताजी कहाँ जा रहे हो? तो उन्होंने कहा, मुसलमान बनने’’। तो योगेन्द्र ने कहा ‘‘मुझे आप से पहले मुसलमान बनना है और मुझे तो बाबरी मस्जिद दोबारा जरूर बनवानी है। और इस तरह दोनो लोग कलमा पढ़ के मुसलमान हो गए, वालिद साहब का मुहम्मद उस्मान और बेटे का मुहम्मद उमर नाम रखा गया
उधर मस्जिद शहीद करने के बाद से बलबीर ज़हनी तौर पर बहुत परेशान रहे उनके नेक सीरत बाप जिन्होंने हमेशा बलबीर को मस्जिद गिराने से रोका था उन्होने बलबीर को बाबरी शहीद किए जाने के बाद गुस्सा हो कर घर से निकाल दिया था फिर कुछ दिन बाद बलबीर के पिता जी का निधन भी हो गया लेकिन बलबीर को खबर न की गई क्योंकि बलबीर के पिता ने वसीयत की थी बलबीर मेरी लाश को हाथ न लगा पाए
बलबीर को अपने पिता की मौत से बहुत धक्का पहुचा, वो अपने बाप की मौत का जिम्मेदार खुद को मानने लगे हर वक्त किसी अनहोनी का डर बलबीर को सताने लगा
इसी बीच बलबीर की मुलाकात अपने साथी योगेन्द्र से हुई जो उस वक्त तक मोहम्मद उमर बन चुके थे ... अपने दोस्त की आपबीती जानकर बलबीर के दिल पर गहरा असर पड़ा, और बलबीर ने भी उसी वक्त इस्लाम कुबूल करने का फैसला कर लिया और एक दिन मस्जिद मे जा कर मोहम्मद आमिर बन गए
आज की तारीख मे ये दोनों दोस्त भारत मे वीरान पड़ी मस्जिदों को आबाद कराने और जहाँ जरूरत के बावजूद मस्जिद नहीं हैं वहाँ मस्जिदों की तामीर कराने के काम मे दिलो जान से लगे हुए हैं
अल्लाह पाक इन दोनों को जज़ा ए खैर अता फरमाए... और हम सबको नेक अमल की तौफीक अता फरमाए ॥ आमीन
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Admin 02
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