Aaj Ki Bat !
पता नहीं सियासत ने मुस्लिमो को क्या समझ रखा हैं ...
कोई मुस्लिमो की खिलाफत पर जिन्दा हैं तो कोई मुस्लिमो के भरोसे पर जिन्दा हैं मगर मुस्लिमो के पास उम्मीदों के सिवा जिन्दा रहने की कोई वजह नज़र नहीं आती इस मुल्क में मुस्लिमो के अलावा भी कोई और मुद्दे हैं या नहीं सियासत करने के लिए, रोज अखबार उठता हूँ, टीवी चलाता हूँ, फेसबुक पे आता हूँ तो मुस्लिम, मुस्लिम, मुस्लिम
मतलब मुस्लिम न हुए शेरेलेक होम्स की फिल्म हो गए जिसका हर सीन सनसनीखेज और रोमांच से भरपूर, मीडिया मुस्लिमो की सामान्य जीवन शैली को भी धार्मिक चश्मे से देखता हैं जैसे किसी भी दाढ़ी वाले ने अपने हलके पन की वजह से कोई उल-जुलूल बयान दिया नहीं के पूरा का पूरा मीडिया जुट जाता हैं उसे फतवा बनाने में, उसे फतवा दिखाने में, भाई जैसे सिर्फ लाल बत्ती लगा लेने से कोई कलेक्टर नहीं हो जाता उसी तरह दाढ़ी रख लेने से कोई मौलाना या मुफ़्ती नहीं हो जाता, और मौलाना मुफ़्ती भी तो गलती कर सकते हैं मगर इसे सारे मुस्लिम समाज से जोड़कर देखना गलत हैं ऐसी उल जुलूल बातो को इस्लाम मानना गलत हैं, मीडिया के इस रवैये से ये अहसास होता हैं की मीडिया एक सुनियोजित तरीके से मुस्लिमो के विशवास को कमजोर करने की कोशिश कर रहा हैं यहाँ मैं सभी जिम्मेदार व्यक्तियों से आत्म मंथन की अपील करता हूँ
अब बात सियासत की तो आज़ादी के बाद से सियासत से जितने जख्म मुस्लिमो ने खाए हैं शायद उतने किसी ने नहीं, हमारे यहाँ के सियासतदारो को मुस्लिमो के नाम से एक ऐसा झुनझुना मिल गया जिससे वो इस मुल्क के हर इन्कलाब को दबा सकते हैं, दलित क्रांति को रोक सकते हैं, हुकूमत के खिलाफ हर आवाज़ को मिटा सकते हैं, समाजवाद और मार्क्सवाद को रोक सकते हैं , हर राष्ट्र व्यापी मुद्दे की हवा निकाल सकते हैं, इन सियासत दारो पर कोई भी मुसीबत आती हैं तो सिर्फ इतना करना होता हैं की या तो मुस्लिमो की खिलाफत कर दे, या मुस्लिमो की हित में किसी योजना की घोषणा कर दे इसके बाद क्या होता हैं वो कहानी कहने की जरुरत नहीं, पर इतना कहूँगा के मुस्लिम नाम के झुनझुने को बजाकर यहाँ के सियासत दार अपने हर गुनाह धो देते हैं और अपना भविष्य चमका देते हैं तो यहाँ मैं कहना चाहता हूँ के सियासत दार भारत के सविधान के हिसाब से मुस्लिमो को सिर्फ इस देश का नागरिक माने मुस्लिम नहीं तो मुस्लिमो की जिन्दगी में थोडा चैन और सुकून आ सकता हैं
और मुस्लिमो की इस बेहूदा हालत की वजह के जिम्मेदार सबसे ज्यादा खुद मुस्लिम ही हैं मुस्लिम अपने दायरों में इतना ज्यादा सिमट गए हैं की बाहरी दुनिया से इन्हें खौफ महसूस होता हैं तो ये दुनिया में आने वाले बदलावों को नकार देते हैं या यूँ कहूँ के मुस्लिम दुनिया में होने वाले परिवर्तनों की समीक्षा अधिकतर नकारात्मक रूप से करते हैं यही से वो मानसिक रूप से पिछड़ जाते हैं और यही पिछड़ापन हमें मुस्लिमो की अधिकतर आबादी में सभी क्षेत्रो में नज़र आता हैं, और इसी पिछड़े और संकुचित व्यवहार के कारण दुसरे धर्मो के लोगो के लिए मुस्लिम जीवन और धर्म सहज जिज्ञासा का विषय बन जाता हैं और इसी का फायदा मीडिया और सियासत अपने नफे नुक्सान के लिए करती हैं
इस देश के हर नागरिक को मिलकर जात, मज़हब, रंग, जगह, जबान, और लैगिक आधार पर होने वाले किसी भी तरह के भेदभाव को जड़ से ख़त्म करना चाहिए
'आबिद'
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