Aaj Ki Bat !
चुनाव का मौसम चल रहा है, हर उम्मीद वार वोटरों को लुभाने के लिय दिन रात एक कर रहा है पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है और वादों की बारिश हो रही है, हम अक्सर रोना रोते हैं कि हमारे नेता अच्छे नहीं हैं वो बेईमान हैं देश का पैसा नाजायज़ तरीकों से खाते हैं और अपनी जुम्मेदारी ईमानदारी से नहीं निभाते वगैरह वगैरह, देखा जाए तो वोटर भी इस सब के जुम्मेदार हैं,
आज लोग जिस बुन्याद पर अपने लीडर चुन रहे हैं वो बुन्याद ही गलत है आज लोग अपना लीडर पक्षपात की बुन्याद पर चुनते हैं जिससे उनको जाति लाभ मिलने की उम्मीद हो या उम्मीद वार उनके धर्म जाति या शहर का रहने वाला हो वगैरह, लोकतंत्र में इससे बड़ी गलती नहीं हो सकती.
दूसरी तरफ वो लोग हैं जो वोट डालते ही नहीं वो भी इसके जुम्मेदार हैं क्यों कि वो सही उम्मीद वार को ना चुन कर गलत को आगे बढ़ने का मौका दे रहे होते हैं, बुराई इसलिए नहीं बढ़ रही कि बुरे लोग ज्यादा हैं बल्कि बुराई इसलिए बढ़ रही है क्यों कि अच्छे लोग खामोश हैं, वोट देना एक बड़ी जुम्मेदारी है जब हम सब अपनी इस जुम्मेदारी को सही अदा करेंगे तो हमारे नेता अपने आप सही हो जाएँगे, सबसे पहली जुम्मेदारी तो यही है कि हम वोट जरूर डालें, आज दुनियां में समझदार कौमें पूरी तरह वोटिंग करती हैं मिसाल के तौर पर यूरोप अमेरिका में यहूदी वोट 100% पड़ते हैं इस वजह से वहाँ की सियासी पार्टियाँ उनका वज़न समझती हैं और उन्हें अहमीयत देती हैं, दूसरी और अहम जुम्मेदारी यह है कि वोट सिर्फ उस उम्मीद वार को दी जाए जो उम्मीद वार उस पद या उस जुम्मेदारी को निभाने की पूरी क्षमता रखता हो और वोटर को इसका यकीन हो कि जिसको वो चुन रहा है वह इस जुम्मेदारी को इमानदरी और इन्साफ के साथ निभाएगा, यह हम सब की नैतिक जुम्मेदारी है.
वोट देना एक तरह की गवाही देना होता है कि मैं जिस को चुन रहा हूँ वह इस जुम्मेदारी को निभाएगा, कुरआन इस बारे में कहता है कि ऐ ईमान वालों इन्साफ पर जम जाओ और अल्लाह के लिए सच्ची गवाही दो चाहे उसमे तुम्हारा, तुम्हारे माँ बाप का और तुम्हारे करीब वालों का नुक्सान ही होता हो....(सूरेह निसा-135) मुफ़्ती शफी साहब (र) इस आयत की तफसीर में लिखते हैं कि नेक और काबिल आदमी को वोट देना सवाब है और नाकाबिल (अयोग्य) आदमी को वोट देना बड़ा गुनाह है और इस आयत के खिलाफ अमल है,
सही बुखारी की एक हदीस में है कि जब हुकूमत नाकाबिल (अयोग्य) लोगों के हाथों सोंपी जाने लगे तो बस फिर कयामत का इन्तिज़ार करना.
कोई कह सकता है कि सारे उम्मीद वार ही बुरें हैं तो हम वोट किसको दें ?
जवाब इसका यह है कि आप उसको वोट दें जो सब उम्मीद वारों में सबसे कम बुरा हो, ज़रुरत अविष्कार की जननी है, जब आप सबसे कम बुरे उम्मीद वार को चुनेगें तो धीरे धीरे अच्छे लोग भी सियासत में आने लगेंगे, और फिर मुझे यह कहने की ज़रूरत नहीं कि जब हमारी लीडरशिप में सिर्फ अच्छे लोग हो जाएँगे तो इस देश को सुवर्ग बन्ने से कोई नहीं रोक सकता, और यह सिर्फ आप के हाथ में है इसलिए वोट ज़रूर दीजये और पक्षपात को बिल्कुल छोड़ दीजये.
आज लोग जिस बुन्याद पर अपने लीडर चुन रहे हैं वो बुन्याद ही गलत है आज लोग अपना लीडर पक्षपात की बुन्याद पर चुनते हैं जिससे उनको जाति लाभ मिलने की उम्मीद हो या उम्मीद वार उनके धर्म जाति या शहर का रहने वाला हो वगैरह, लोकतंत्र में इससे बड़ी गलती नहीं हो सकती.
दूसरी तरफ वो लोग हैं जो वोट डालते ही नहीं वो भी इसके जुम्मेदार हैं क्यों कि वो सही उम्मीद वार को ना चुन कर गलत को आगे बढ़ने का मौका दे रहे होते हैं, बुराई इसलिए नहीं बढ़ रही कि बुरे लोग ज्यादा हैं बल्कि बुराई इसलिए बढ़ रही है क्यों कि अच्छे लोग खामोश हैं, वोट देना एक बड़ी जुम्मेदारी है जब हम सब अपनी इस जुम्मेदारी को सही अदा करेंगे तो हमारे नेता अपने आप सही हो जाएँगे, सबसे पहली जुम्मेदारी तो यही है कि हम वोट जरूर डालें, आज दुनियां में समझदार कौमें पूरी तरह वोटिंग करती हैं मिसाल के तौर पर यूरोप अमेरिका में यहूदी वोट 100% पड़ते हैं इस वजह से वहाँ की सियासी पार्टियाँ उनका वज़न समझती हैं और उन्हें अहमीयत देती हैं, दूसरी और अहम जुम्मेदारी यह है कि वोट सिर्फ उस उम्मीद वार को दी जाए जो उम्मीद वार उस पद या उस जुम्मेदारी को निभाने की पूरी क्षमता रखता हो और वोटर को इसका यकीन हो कि जिसको वो चुन रहा है वह इस जुम्मेदारी को इमानदरी और इन्साफ के साथ निभाएगा, यह हम सब की नैतिक जुम्मेदारी है.
वोट देना एक तरह की गवाही देना होता है कि मैं जिस को चुन रहा हूँ वह इस जुम्मेदारी को निभाएगा, कुरआन इस बारे में कहता है कि ऐ ईमान वालों इन्साफ पर जम जाओ और अल्लाह के लिए सच्ची गवाही दो चाहे उसमे तुम्हारा, तुम्हारे माँ बाप का और तुम्हारे करीब वालों का नुक्सान ही होता हो....(सूरेह निसा-135) मुफ़्ती शफी साहब (र) इस आयत की तफसीर में लिखते हैं कि नेक और काबिल आदमी को वोट देना सवाब है और नाकाबिल (अयोग्य) आदमी को वोट देना बड़ा गुनाह है और इस आयत के खिलाफ अमल है,
सही बुखारी की एक हदीस में है कि जब हुकूमत नाकाबिल (अयोग्य) लोगों के हाथों सोंपी जाने लगे तो बस फिर कयामत का इन्तिज़ार करना.
कोई कह सकता है कि सारे उम्मीद वार ही बुरें हैं तो हम वोट किसको दें ?
जवाब इसका यह है कि आप उसको वोट दें जो सब उम्मीद वारों में सबसे कम बुरा हो, ज़रुरत अविष्कार की जननी है, जब आप सबसे कम बुरे उम्मीद वार को चुनेगें तो धीरे धीरे अच्छे लोग भी सियासत में आने लगेंगे, और फिर मुझे यह कहने की ज़रूरत नहीं कि जब हमारी लीडरशिप में सिर्फ अच्छे लोग हो जाएँगे तो इस देश को सुवर्ग बन्ने से कोई नहीं रोक सकता, और यह सिर्फ आप के हाथ में है इसलिए वोट ज़रूर दीजये और पक्षपात को बिल्कुल छोड़ दीजये.
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